शुभम संस्था नहीं एक परिवार है
अपने बचना औरों को बचाना इसी को तुम धरम समझना
धर्म में सभी बचते रहते संप्रदाय को न धर्म कहते।
अपनों से अपनी बात :
हम बहुत गर्व से कहते है की हम मनुष्य है ? क्या सचमुच हम
मनुष्य बन पाए हैं ? हम न तो खुद को पहचान पाए न अपने रिश्तों को और न
अपने कर्तब्यों को ?
हम समाज सेवा की बात करते है पर समाज सेवा के लिए
पैसे से ज्यादा ह्रदय देने की जरुरत है सिर्फ ह्रदय ही नहीं बल्कि
हृदयवता की !
हम गरीबों की सेवा की अगर बात करते है, तो हमें आज ही समाज
सेवा की बात कहनी छोड़ देनी चाहिए क्योंकि कोई कितना भी गरीब हो आपकी
सेवा में अगर प्रेम और अपनत्व नहीं है तो यह सेवा एक ढोंग के अलावा और
क्या है ?