Friday, 14 February 2014

शुभम संस्था नहीं एक परिवार है

अपने बचना औरों को बचाना इसी को तुम धरम समझना

धर्म में सभी बचते रहते संप्रदाय को न धर्म कहते।

"sri sri thakur"

अपनों से अपनी बात    : 


  1. हम बहुत गर्व से कहते है की हम मनुष्य  है ?  क्या सचमुच हम मनुष्य बन पाए हैं ? हम न तो खुद को पहचान पाए न अपने रिश्तों को और न अपने कर्तब्यों को ?


  2.  हम   समाज  सेवा  की बात   करते  है पर समाज सेवा के लिए पैसे से ज्यादा ह्रदय देने की जरुरत है सिर्फ  ह्रदय ही नहीं  बल्कि हृदयवता की !


  3.  हम गरीबों की सेवा की अगर बात करते है, तो हमें आज ही समाज सेवा की बात कहनी छोड़  देनी चाहिए क्योंकि कोई कितना भी गरीब हो आपकी सेवा में अगर प्रेम और अपनत्व नहीं है तो यह सेवा एक ढोंग के अलावा और क्या है ?